• अंबानी के जंगल में मोदी

    नरेन्द्र मोदी ने अपने आलोचकों को कड़ा जवाब दे दिया है। पिछले 11 सालों से वे सुन-सुन कर तंग आ गए थे कि मोदी साक्षात्कार से घबराते हैं, मोदी चीन को लाल आंखें नहीं दिखाते, मोदी ये नहीं करते, मोदी वो नहीं करते

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    - सर्वमित्रा सुरजन

    वनतारा में मोदी को गोदी मीडिया वाले पत्रकारों को खिलाने जैसा आनंद भी आया। एक वीडियो आया है जिसमें मोदी शेर और सिंह शावकों को गोद में बिठाकर पुचकार रहे हैं, बोतल से दूध पिला रहे हैं। एक नन्हा सिंह तो दहाड़ने की कोशिश करता भी दिखा। नादान है उसे नहीं मालूम कि जिसकी गोद में बैठते हैं, उसके सामने न दहाड़ते हैं, न दहाड़ने का दिखावा करते है।

    नरेन्द्र मोदी ने अपने आलोचकों को कड़ा जवाब दे दिया है। पिछले 11 सालों से वे सुन-सुन कर तंग आ गए थे कि मोदी साक्षात्कार से घबराते हैं, मोदी चीन को लाल आंखें नहीं दिखाते, मोदी ये नहीं करते, मोदी वो नहीं करते। अब मोदी ने कुछ ऐसा कर दिखाया कि सबकी बोलती बंद हो गई। इस काम में उनके मित्र मुकेश अंबानी बड़े मददगार साबित हुए। हर कोई ट्रंप जैसा नहीं होता, जिनका नाम लेकर कांग्रेस ने तंज कसा था कि दुश्मन न करे, दोस्त ने वो काम किया है..। मुकेश भाई ने कैसेट पलट कर ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे, बजा दिया। मोदी के दुश्मनों को आईना दिखाने के लिए उनसे अपने निजी जंगल वनतारा का उद्घाटन करवा दिया। वनतारा को दुनिया का सबसे बड़ा वन्यजीव बचाव और पुनर्वास केंद्र बताया जा रहा है। एक निजी जमीन पर बना जंगल और उसमें रखे गए जानवरों पर कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं, लेकिन उसकी चर्चा बाद में। पहले देख लेते हैं कि मोदीजी ने कैसे बुरी नजर वालों को अपनी टेढ़ी नजरें दिखा दीं।

    सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री मोदी ने जानवरों के साथ अठखेलियां करते, लाड़ करते-दुलारते, निहारते कई तस्वीरें और वीडियो डाले हैं। मैन वर्सेज वाइल्ड की शूटिंग हुए छह साल बीत गए, लेकिन पिक्चर अभी बाकी है। वाइल्ड लाइफ का एडवेंचर जैसे आजकल नवधनाढ्यों के सिर पर सवार रहता है, उसकी झलक मोदी के वनतारा एडवेंचर में देखने मिली। यहीं उन्हें अपने आलोचकों का मुंह बंद करने का भी मौका मिला, जो उन्हें डरपोक कहते थे, तंज कसते थे कि मोदी पत्रकारों का सामना नहीं कर सकते। लेकिन आलोचकों को ये नहीं पता था कि मोदी उनका सामना कर सकते हैं, जिसे दुनिया बब्बर शेर कहती है। मोदी अब कह सकते हैं कि जाओ जाकर राहुल के बब्बर शेरों को कह दो कि मैं असली बब्बर शेरों से मिलकर आया हूं। जाओ जाकर मुझसे सवाल पूछने के उत्सुक लोगों को कह दो, मैंने शेर और चीते का साक्षात्कार किया है। अब ये अलग बात है कि मोदी जब शेर, चीते, सिंह सब से साक्षात मिल रहे थे तो बीच में एक कांच की दीवार थी। इधर से शेर अपना हाथ मारता, उधर से मोदी अपना हाथ देते, दे ताली। अगर पत्रकार भी इसी तरह कांच की दीवार के आर-पार साक्षात्कार लेने की कला सीख जाएं, तो फिर मोदी एक क्या सौ सवालों पर इसी तरह दे ताली कर देंगे। हाथों की कला तो उन्हें वैसे भी खूब आती है। अमेरिका में पत्रकार ने अडानी पर सवाल पूछा था तो उस वक्त दे ताली नहीं कर पाए, मगर हाथ नचा कर अच्छे से जवाब दे ही दिया था।

    वनतारा में मोदी को गोदी मीडिया वाले पत्रकारों को खिलाने जैसा आनंद भी आया। एक वीडियो आया है जिसमें मोदी शेर और सिंह शावकों को गोद में बिठाकर पुचकार रहे हैं, बोतल से दूध पिला रहे हैं। एक नन्हा सिंह तो दहाड़ने की कोशिश करता भी दिखा। नादान है उसे नहीं मालूम कि जिसकी गोद में बैठते हैं, उसके सामने न दहाड़ते हैं, न दहाड़ने का दिखावा करते है। इस मामले में अपनी मौसी बिल्ली से सीखने की जरूरत है। मोदी ने मेडागास्कर में पाए जाने वाले दुर्लभ लेमूर को भी अपनी गोद में बिठाकर खाना खिलाया। लेमूर वानर कुल का ही प्राणी है। कुशल मदारी अच्छे से जानता है कि अपने बंदर को कैसे नचाना है, कब उसे खिलाना है, कब उसके जरिए खिलवाड़ करके दिखाना है। वो तो मेनका गांधी ने अगर भालुओं और बंदरों की रक्षा का स्वघोषित जिम्मा नहीं उठाया होता तो आज सड़कों पर कई मदारी वनतारा से बेहतर मनोरंजन लोगों का कर के दिखाते, लेकिन एक को विजेता बनाने के लिए सारों को रास्ते से हटा दिया गया।

    खैर, करीब साढ़े तीन हजार एकड़ में बने अंबानी के इस जंगल में मोदी ने ढेर सारे जीव जंतुओं से मुलाकात की। थलचर, जलचर, नभचर सारे प्राणी परमात्मा के साक्षात अंश से मिलकर गदगद हुए होंगे, ऐसा मान लेना चाहिए। वर्ना जानवरों तो अपने जंगलराज में ही मगन रहते हैं, उन्हें कहां मौका मिलता है कि वो लोक राज के मुखिया से भी मिलें। हो सकता है मोदीजी ने उनकी भाषा में बताया भी हो कि अब बिहार में चुनाव होने हैं, और वहां हमें बार-बार जंगलराज की बात करनी पड़ती है। इसलिए आप लोग मुझे सीधे फर्स्ट हैंड जानकारी दें कि आपके असली जंगलराज में आखिर होता क्या है। जैसे बिल गेट्स से एआई और एलन मस्क से सीधे एक्स और टेस्ला की जानकारी मोदी ले चुके हैं, वैसे ही अबकी बार जंगलराज से सीधा साक्षात्कार, का नारा वनतारा में उन्होंने बुलंद किया होगा। यहां मोदी को अजगर, ऊदबिलाव, ओरंगुटान, दरियाई घोड़ा, फ्लेमिंगो और शायद गिद्ध या बाज से भी मिलने का मौका मिला। सुअऱ शायद वनतारा में नहीं हैं या होंगे भी तो उनके साथ मोदी की तस्वीर देखने नहीं मिली। वैसे भी योगीजी ने तो बताया है कि गिद्ध और सुअर महाकुंभ पर नजर रखे थे।

    मोदीजी ने शीशे के पुल पर खड़े होकर नीचे पानी में घड़ियालों को भी देखा। इस मुलाकात के वीडियो को देखकर समझना कठिन था कि कौन किसको देखकर चुनौती महसूस कर रहा है। हाल-फिलहाल कोई चुनाव नहीं है, न ये कोई विदेशी दौरा था, जहां सबके सामने आंसू बहाने की जरूरत पड़े। अगर ऐसी नौबत आती, तब तो घड़ियाल सोचते कि अच्छा है हम पानी में ही ठीक हैं, कम से कम यहां मुंह छिपा कर अपने आंसू भी छिपा लेंगे, बाहर रहते तो आंसू बहाने की प्रतियोगिता में हार ही जाते। मोदीजी को वनतारा के फ्लेमिंगों के बीच जाकर अपनेपन का खासा अहसास हुआ होगा। नारंगी फ्लेमिंगों को क्या पता कि उनका रंग देश में कितना सियासी रसूख रखता है। वैसे कानपुर के चिड़ियाघर में रखे गए सारस को बेहद अफसोस हो रहा होगा कि अंबानी की मेहरबान नज़रें उस पर क्यों नहीं पड़ीं। आरिफ ने तो उस सारस के साथ खूब दोस्ती निभाई, लेकिन यहां पशु पक्षियों के संरक्षण और बचाव के लिए बनाए गए कठिन वन्य कानून आड़े आ गए और आरिफ से उस सारस को न केवल अलग कर दिया गया, बल्कि अब आरिफ को सारस से मिलने की भी इजाज़त नहीं है, क्योंकि पिंजरे में कैद सारस आरिफ को देखकर मिलने के लिए तड़पने लगता है। दो साल पहले उसे वन अधिकारियों ने आरिफ से अलग कर दिया था, अब तो न जाने किस हाल में होगा।

    मालूम नहीं मोदीजी की वनतारा में किसी जानवर से ऐसी ही पक्की वाली निस्वार्थ दोस्ती हुई या नहीं, क्योंकि अगर वहां कोई जानवर मोदी से मिलने तड़पे तो उसमें तो कोई वन्य कानून आड़े नहीं आएगा। वैसे भी जब दुनिया भर से चुन-चुन कर जानवरों को वनतारा में रखा जा सकता है, तो क्या राष्ट्र्रीय, क्या अंतरराष्ट्रीय किसी कानून के बारे में पूछने का मतलब ही नहीं रह जाता। छोटे, बड़े, शाकाहारी, मांसाहारी, लुप्तप्राय, दुर्लभ तमाम तरह के जानवर गुजरात ऐसे ही तो नहीं पहुंचे होंगे, इन्हें अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से गुजारते हुए लाया गया, रखा गया, पाला गया। यह सब करने के लिए किस तरह राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सरकारों की स्वीकृति मिली, यह बड़ा सवाल है।

    अब मोदी वहां अपनी पूरी कैमरा टीम के साथ पहुंचे, तरह-तरह से फोटो शूट हुए। क्या हम किसी राष्ट्रीय अभयारण्य में इतनी मनमर्जी से टहल सकते हैं। वैसे जंगली जानवर इंसानों से घुलना-मिलना पसंद नहीं करते, लेकिन यहां पालतुओं की तरह उन्हें हाथ से खिलाया-पिलाया गया और वीडियो भी बनवाए गए, क्या इसमें नियमों का उल्लंघन नहीं हुआ। बहुत से जानवरों का इलाज यहां हो रहा है, जिनका मुआयना भी मोदी ने किया। किसी की जान बचाना सही है, लेकिन क्या जब ये जानवर ठीक हो जाएंगे तो क्या उन्हें वापस उनके अपने घर में छोड़ा जाएगा या ये वनतारा की ही संपत्ति कहलाएंगे। इस संपत्ति का क्या कोई व्यापारिक लाभ भी आगे लिया जाएगा, क्योंकि दुनिया में जानवरों की खाल, हड्डी, नाखून, सींग, फर सबकी बड़ी मांग है, इसलिए इनका शिकार होता है और इनकी रक्षा के लिए ही तमाम कानून बने हैं। अब उन कानूनों का क्या होगा, वनतारा की निगरानी का हक क्या सरकार के वन मंत्रालय को होगा। ऐसे कई सवाल हैं, जो मोदी जी से साक्षात्कार में पूछे जा सकते हैं। पर इसके लिए शीशे की दीवार का इंतजाम करना होगा, मोदी तभी सामने आएंगे।

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